मंगलवार, 3 नवंबर 2009

"मर" गया?? "मर" क्या है जो गया ?



अब आगे > पिछली पोस्ट में आत्मा पर थोडा सा प्रकाश डाला गया अब जरुरत है आत्मा को विस्तार से समझने की|
आत्मा के तीन गुण होते हैं मन, बुद्धि, और संस्कार|
मन: जो हमेशां चलता रहता है ये कार्य करूँ या न करूँ ?
बुद्धि :जो judgement करती है की इस कार्य को कर लें या न करें, ये स्पष्ट रूप से निर्णय देती है|
संस्कार : जो कार्य हमने किया उसका हमें क्या फल मिलेगा, अच्छा या बुरा जो भी मिलना है उसी वक़्त आत्मा में रिकोर्ड हो गया |
इन तीनो गुणों के साथ "मैं आत्मा" इस शरीर के मष्तिष्क में निवास करती हूँ जैसे एक गाडी चालक ड्राइविंग सीट पर बैठ के पूरी गाडी को कंट्रोल करता है, न की पूरी गाडी में वो मौजूद होता है ठीक उसी भांति आत्मा मष्तिष्क में बैठकर पुरे शरीर की क्रिया करती है, जैसे एक घर में रहने वाला व्यक्ति घर की खिड़की खोलता है दरवाजा खोलता है, साफ़ सफाई का सारा कार्य करता है|
आत्मा भी उसी प्रकार अपनी समस्त इन्द्रियों का संचालन करती है| कुछ पूर्व निशानिया जो इंगित करती हैं की मैं एक आत्मा हूँ!
हम टिका माथे के मध्य भाग में लगाते हैं क्यों ?
स्त्री अपने सुहाग की टिक्की भी माथे में लगाती है लेकिन सुहाग उजड़ जाने के बाद टिकी नहीं लगाती है क्यों? उतर: हम टिका माथे के मध्य भाग में लगाते हैं क्योंकि वो आत्मा का निवास स्थान है, और जिस घर में कोई रहता हो उसे सुनसान नहीं छोडा जता, कुछ न कुछ डेकोरेशन होना ही चाहिए |
स्त्री अपने सुहाग की निशानी माथे पे लगाती है क्योंकि वो बताती है ये स्वामी का स्थान है अर्थात इस शरीर की स्वामी भी आत्मा है, सुहाग उजड़ने के पश्चात बिंदी हटाती है की मेरा स्वामी चला गया| तो ये स्थान स्वामी के रहने का होता है|
कई बार देखते हैं कई लोग ऐसे मर जाते है की कुछ पता नहीं चलता की ये क्यूँ मरा वो बोलता नहीं, शांस नहीं लेता क्यूँ?? जितने भी अंग थे वहीँ पर हैं पर वो क्यूँ नहीं बोल रहा ??
हम कहते हैं "मर गया"?? मतलब?? "मर" क्या है जो चला गया? यानी कुछ ऐसी शक्ति जो चली गई, जो बोलती थी, जो सुनती थी, जो देखती थी, वही आत्मा अथवा "मर"इस शरीर को छोड़ कर चली गई!!!!!! ॐ शांति!!!!
क्रमश:

2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा आध्यात्मिक लेख ।
    साहित्य पढने के लिए मेरे ब्लोग पर पधारें ।

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  2. डॉ शैलेन्द्र मोहन जैन7 फ़रवरी 2017 को 4:19 pm बजे

    कभी न मर पिघल सकूं
    वो फौलाद हूँ
    क्योंकि मैं परमात्मा की
    पर्मानेंट औलाद हूँ

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